My 2nd hindi poem on this blog...
wrote it a long time back and then forgot all about it. Came across it while searching for some notes, so i thought I'd better put it up lest I forget again!
check it out..
कब कहा मैंने कि इक दिन,
करके दिखा दूंगा तुम्हे कुछ,
कब कहा मैंने कि इक दिन,
बन के दिखा तुम्हें कुछ,
मैं तो ठहरा तुच्छ प्राणी,
मेरी दुनिया मेरा घर था,
सिमटा हुआ हर पल था मेरा,
वक़्त मेरा भी प्रखर था,
थम गयी है ज़िन्दगी औ',
बुझ गया एहसास भी है,
राह में जलता है दीपक,
मन में दबी इक साँस भी है,
मर चुका हूँ मैं पर अब भी,
वो सुलगती आस भी है.
4 comments:
wah wah...kya kavita likhi hai!!;)
lol...
shuriya..
exams main likhi thi ya uske baad?
btw upar shukriya ki spelling galat hai.. lolz
@ nishi..
i guess feb mein likhi thi.. before the board xams.. :P
and yeahh..
its shukriya*
thnx for pointing out!
:)
Post a Comment